क्या मतदाता भी अपना घोषणा पत्र जारी करें ?

मधुकर पवार*

वैसे तो देश में 12 महीनों कहीं न कहीं चुनाव होते ही रहते हैं। इस समय मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम विधानसभा के चुनाव की घोषणा हो चुकी है और चुनावी सरगर्मियां भी बढ़ गई हैं। ये चुनाव 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की दिशा भी तय करेंगे। इसलिये साल 2023 में चुनाव का माहौल अभी तक हुए चुनाव के माहौल से काफी कुछ अलग है। राजनीतिक विश्लेषक इन चुनावों को लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल मुकाबला कह रहे हैं और ये बात काफी हद ठीक भी है। 

चुनाव की सरगर्मी शुरू होते ही सभी दलों ने मतदाताओं को लुभाने के लिए तरह-तरह के प्रलोभन देना शुरू कर दिया है। इन प्रलोभनों की पूर्णाहुति घोषणा-पत्रों से होती है जिसमें मतदाताओं को पाँच वर्षों के दौरान दी जाने वाली सुविधाओं, सेवाओं ऋण माफी, स्कूटी और लैपटॉप वितरण, छात्रवृत्ति, आरक्षण, मोबाइल वितरण, बिजली के बिलों में छूट आदि सहित न जाने कितने ही दावे शामिल किए जाते हैं। पिछले महीनों हुए हिमाचल प्रदेश, गुजरात और कर्नाटक के चुनावी के घोषणा पत्रों ने तो चुनावी पण्डितों के आकलन पर पूरी तरह पानी फेर दिया है। इसके पहले शायद कभी भी इस तरह का घोषणा पत्र जारी नहीं हुआ। अब वही सब कुछ पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के जारी होने वाले घोषणा पत्रों में दिखाई देगा और इसकी शुरूआत हो चुकी है। आम मतदाता किसे चुनता है, यह तो गर्भ में छुपा हुआ है लेकिन यह तो स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि विधानसभा और अगले वर्ष लोकसभा के चुनाव में कुछ ऐसी घोषणाएं की जा सकती हैं जिनकी अभी कल्पना भी नहीं की जा सकती। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि राजनीतिक स्वार्थ के चलते देश हित कहीं पीछे छूट गया है। .

चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद जब सरकार बन जाती है तब सभी सरकारें, चाहे वह केंद्र की सरकार हो या राज्यों की, पहले 100 दिन का प्रगति कार्ड आम जनता के सामने समारोह पूर्वक जश्न मना कर प्रस्तुत करती है। फिर एक  साल पूरा होने पर भी यही प्रक्रिया अपनाई जाती है। प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडया में सरकार के गुणगान विज्ञापनों की भरमार होती है। सभी शहर होर्डिंग से पट जाते हैं। ऐसा लगता है, चारों ओर विकास की गंगा बह रही है और आम जनता की सभी समस्याएं पूरी हो गई हैं। सत्तारूढ़ दल द्वारा की जाने वाली चुनावी घोषणाओं में से कितनी घोषणाएं पूरी हुई हैं, इसके बारे में स्वयं सरकार अपने मुंह मियां मिट्ठू बनकर बयान जारी करती है। घोषणाओं और उन पर अमल करने का पोस्टमार्टम संचार माध्यमों के जरिए यदा-कदा होते ही रहता है। आलोचनाओं का असर शायद सरकारों पर नहीं होता और इसी का परिणाम है कि आम जनता भी घोषणा पत्रों को बहुत गंभीरता से नहीं लेती है।   

चुनाव की घोषणा होने के बाद चुनाव प्रचार के दौरान क्षेत्र विशेष की समस्याओं के निराकरण नहीं होने के कारण मतदाताओं द्वारा जब मतदान के बहिष्कार की खबरें आती है तब राजनीतिक दल मतदाताओं को मनाने पहुंच जाते हैं। किसी तरह मतदाता मान भी जाते हैं। हो सकता है चुनाव के बाद कुछ समस्याएं हल भी हो जाती हों। यह तो क्षेत्र विशेष की बात होती है लेकिन समग्र रूप से देखने में आता है कि बिना रोए तो मां भी बच्चे को दूध नहीं पिलाती है। यही बात पूर्णरूपेण सत्य प्रतीत होती है। जो मांग करते हैं उन्हें ही मिलता है. बाकी टूंगते रह जाते हैं। ऐसा भी नहीं है कि केवल क्षेत्र विशेष की जनता ही समस्या ग्रस्त है। हर क्षेत्र में ही कुछ न कुछ समस्याएं तो होती ही हैं और आम जनता भी जानती है कि वादे तो वादे ही होते हैं। इसलिए जब कभी स्थानीय जनप्रतिनिधि का दौरा होता है, शिकायतें मात्र औपचारिकता बनकर आश्वासन की भेंट चढ़ जाती हैं।   

    जनप्रतिनिधियों की इसी उदासीनता के कारण मतदाताओं के सामने चुनावी समर में खड़े उम्मीदवारों में से किसी एक को चुनना ही पड़ता है। भारत में अभी मतदान अनिवार्य तो नहीं है लेकिन चुनाव आयोग प्रयास करता है कि सभी मतदाता मतदान अवश्य करें। किसे मत देना है, यह तो पूरी तरह मतदाता के ऊपर निर्भर होता है लेकिन कुछ बरस पहले चुनाव आयोग ने नोटा का विकल्प देकर मतदाताओं को यह छूट दे दी है कि वे मतदान में भाग तो लें लेकिन अपनी पसंद का उम्मीदवार न हो तो अपना मत नोटा के बटन पर दबाकर अपना विरोध दर्ज करा दे। अक्सर देखने में आया है कि मतदाता नोटा का विकल्प तभी चुनता है जब उसे लगता है कि उसकी समस्याओं का निराकरण नहीं हुआ है और आगे भी नहीं होगा। या वह किसी को भी बेहतर उम्मीदवार नहीं मानता।  

अपनी मांगे मनवाने के लिए नोटा से बेहतर विकल्प मतदान के बहिष्कार का हो सकता है और अनेक उदाहरण है जहां मतदान की मात्र बहिष्कार की घोषणा से ही राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों के कान खड़े हो जाते हैं। मतदाताओं का यह तरीका नोटा से बेहतर विकल्प कहा जा सकता है। अब मतदाताओं को इससे आगे बढ़कर राजनीतिक दलों से रेवड़ियों के बदले कुछ सकारात्मक और दीर्घकालीन विकास के लिए सौदेबाजी करनी चाहिए। जिस तरह सभी राजनीतिक दल अपना – अपना घोषणा पत्र जारी करते हैं, मतदाताओं को भी अपना मांग पत्र जारी करना चाहिए। ग्राम पंचायत, नगर निकाय, विधानसभा और लोकसभा के लिए विकास कार्यों का अलग-अलग दायरा होता है। इसी के तहत जागरूक मतदाता ग्राम पंचायत, विधानसभा और संसदीय क्षेत्र की सामान्य समस्याओं का लेखा-जोखा इकट्ठा कर अपना मांग पत्र बनाए और यह घोषणा कर दे कि चुनाव में उसी उम्मीदवारों को मत देंगे जो उनकी मांगों को पूरा करने का आश्वासन नहीं, शपथ पत्र दे। 

मतदाताओं के मांग पत्र में बुनियादी आवश्यकताओं जैसे रोजगार, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मुद्दों के अलावा स्तरीय सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था, अच्छी सड़कें जिन पर रास्ते के दोनों ओर वृक्ष हों, स्वच्छ पेयजल जैसे  मुद्दे भी शामिल किए जाने चाहिए। मांग पत्र में ऐसे विषय शामिल करने होंगे जिससे सभी मतदाता लाभान्वित हो रहे हों। यदि मतदाताओं को सभी बुनियादी सुविधाएं प्राप्त होने लगेगी तो निश्चित ही उनकी कार्य क्षमता में वृद्धि होगी, उत्पादकता बढ़ेगी, तनाव में कमी आएगी। एक छोटे से उदाहरण से समझा जा सकता है…. मुझे अयोध्या बाईपास से हमीदिया रोड जाना है। बहुत जरूरी काम होने के बावजूद मन में यह विचार जरूर आता है कि काश वहां जाने के लिए अच्छी, साफ – सुथरी और धूल मुक्त सड़क होती। जब मुख्यमंत्री तक मानते हैं कि सड़कें बहुत खराब हैं, इसके बावजूद सड़कों की बदहाल हालत मतदाता के मांग पत्र का अहम हिस्सा क्यों नहीं बनना चाहिये? इसी तरह पेयजल, वृक्षारोपण, खाली स्थानों पर बगीचे और मैदान विकसित करना, गंदे पानी की निकासी और उनका ट्रीटमेंट, स्वच्छता की सतत निगरानी जैसे अनेक बुनियादी कार्य हैं जिसके चलते आम आदमी के मानसिक तनाव में काफी कमी आ सकती है। इन प्रयासों से जनप्रतिनिधियों की आम जनता के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित हो सकेगी। स्वस्थ लोकतंत्र के लिए मतदाताओं की जागरूकता केवल मतदान करने तक ही सीमित न होकर अपने अधिकारों के लिए भी सजग होना चाहिए।

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*मधुकर पवार वर्तमान में भोपाल में निवासरत हैं. मार्च 2021 में केंद्रीय संचार ब्यूरो. सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार, इंदौर से सेवानिवृत्त होने के बाद इन दिनों स्वतंत्र लेखन के साथ राष्ट्रीय कृषि अखबार “कृषक जगत” में नियमित रूप से कृषि, जल संरक्षण, ग्रामीण विकास आदि विषयों पर लेखन कर रहे हैं. सम्पर्क 9425071942 और 8770218785.

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