
राजकेश्वर सिंह*
अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव व इसी साल होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को लेकर आमने-सामने की लड़ाई की तस्वीर कमोबेश साफ हो गई है। एक तरफ केंद्र में सत्तारूढ़ राजग (एन.डी.ए.), खासतौर से भाजपा है, तो दूसरी तरफ विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडिया’ (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस) ने भी उसे रोकने की रणनीति पर काम तेज़ कर दिया है। पिछले कुछ बरस में भाजपा एक ऐसी पार्टी के रूप में उभरी है जो अपना हर कदम चुनावी तैयारियों के लिहाज़ से ही आगे बढ़ाती हुई दिखती है और पूरे साल उस दिशा में सक्रिय रहती है। अपनी इस रणनीति का उसे बीते वर्षों में भरपूर फायदा भी मिला है। कई राज्यों में सरकार बनाने के साथ ही केंद्र में भी वह दो बार सरकार बना चुकी है।
आलोचनाओं से बेपरवाह केंद्र सरकार
इस अंतराल में भाजपा से निपटने के विपक्ष के सारे टोटके अब तक ज़्यादातर फेल ही रहे हैं, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा और उसके साथी दलों की राह पहले के चुनावों जैसी ही आसान होगी, यह बात राजनीतिक विश्लेषकों के भी गले आसानी से उतरने वाली नहीं है। शायद खुद भाजपा को भी इसका अहसास है। तभी तो वह अपने ज़्यादातर फैसलों पर बेधड़क, बेपरवाह आगे बढ़ रही है। केंद्र समेत कुछ राज्यों की उसकी सरकारों की कार्यशैली पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। गौर करें तो केंद्रीय सरकारी जांच एजेंसियों के कामकाज के तरीकों पर हाल के वर्षों में जितनी अंगुलियां उठी हैं, वैसी स्थिति पहले कभी नहीं देखी गई। फिर भी सरकार विपक्ष के सवालों व कई बार अदालतों की टीका-टिप्पणी की अनदेखी कर अपने ही ढर्रे पर डटी हुई है। इसकी कई नजीरें मिल जाएंगी, जब बड़े अहम सवाल भी उठे हों और सरकार ने उस पर अपनी प्रतिक्रिया तक देना मुनासिब नहीं समझा हो।
हाल के दिनों में यह बाद कई दिनों तक सुर्खियों में रही कि सरकार ने संसद का विशेष सत्र तो बुला लिया है, लेकिन वह उसकी कार्यसूची का खुलासा ही नहीं कर रही है। विपक्षी दलों ने उसे लेकर बहुत शोर मचाया, लेकिन सरकार उस पर कोई तवज्जो ही नहीं दी। कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी ने उसे लेकर प्रधानमंत्री को चिट्ठी भी लिखी। साथ ही संसद सत्र के दौरान कुछ दूसरे जरूरी मुद्दों पर चर्चा भी कराये जाने की मांग की। बाद में उस चिट्ठी पर प्रधानमंत्री ने नहीं, बल्कि संसदीय कार्य मंत्री ने सोनिया गांधी को जवाब भेजा। हालांकि कल देर शाम सत्र की कार्यसूची तो जारी कर दी लेकिन यह स्पष्ट करने के बाद ही कि सरकार किसी के दबाव में ऐसा नहीं कर रही।
सरकार के कामकाज के तरीकों का एक और मामला भी कुछ अलग कहानी कहता है। बीते दिनों दिल्ली में हुए ऐतिहासिक जी-20 सम्मेलन को लेकर भारत की बड़ी वाहवाही हुई। कार्यक्रम की सफलता की खुशी में जलसे भी हुए। होना भी चाहिए, लेकिन उसी दौरान सम्मेलन में भाग लेने आए अमेरिकी राष्ट्रपति को उनके साथ भारत आए उनके देश के पत्रकारों को भी यहां बात करने का अवसर नहीं मिला। बाद में जब यह खबर विदेशी मीडिया में सुर्खियां बनी तो अमेरिकी अफसरों ने यह खुलासा किया कि उनके स्तर से कई बार भरसक प्रयास के बाद भी भारत ने उनके राष्ट्रपति और उनके देश के पत्रकारों को बात करने का अवसर नहीं दिया। हालांकि, अमेरिकी अफसरों की उस बात को भारत की मीडिया ने भी तवज्जो नहीं दी। बाद में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जी-20 सम्मेलन से वापसी में वियतनाम पहुंचने पर पत्रकारों को बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के समक्ष मानव अधिकारों और फ्री प्रेस के मुद्दों को उठाया है।
केन्द्रीय नेतृत्व के चौंकाने वाले फैसले
दरअसल, केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा की अगुवाई वाली राजग सरकार के एक के बाद एक चौंकाने वाले लिए गए या फिर लिए जाने वाले संभावित फैसलों ने देश की राजनीतिक हलचल में तेजी पैदा कर दी है। सरकार ने ‘एक देश-एक चुनाव’ (वन नेशन-वन इलेक्शन) के लिए कमेटी गठित करके उसकी भी कवायद शुरू कर दी है। इन खबरों से विपक्ष की पेशानी पर बल तो है ही, इस बीच भारत के अंग्रेजी नाम इंडिया को भी बदले जाने की चर्चाओं ने विपक्ष की बेचैनी बढ़ाकर ही रखी है। चूंकि विपक्ष के 28 दलों ने इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस (इंडिया) के नाम से 2024 के लोकसभा चुनाव में राजग, खासतौर से भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए जो गठबंधन बनाया हुआ है और उसे ‘इंडिया’ गठबंधन के नाम से प्रचारित किया जा रहा है। यह बात जगजाहिर है कि सत्तापक्ष को विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ नाम पर कड़ा एतराज है और वह उस पर तरह-तरह की तंज़ करने वाली टिप्पणी भी कर ही रहा है। खुद प्रधानमंत्री कई सवाल उठाते हुए विपक्ष के ‘इंडिया’ गठबंधन को घमंडिया गठबंधन तक कह चुके हैं। ऐसे में यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि सरकार कहीं अब देश के अंग्रेजी नाम इंडिया को हटाकर उसे उसके हिंदी नाम भारत तक ही न सीमित कर दे। इस बीच, दिल्ली में जी-20 सम्मेलन के दौरान भारत की राष्ट्रपति की ओर से सम्मेलन के प्रतिनिधियों को भेजे गए भोज के निमंत्रण पत्र में ‘रिपब्लिक ऑफ भारत’ लिखे जाने से भी इस चर्चा को बल मिला है, जबकि इससे पूर्व में ऐसे मौकों पर होने वाले आयोजनों में राष्ट्रपति की ओर से भेजे जाने वाले आमंत्रण पत्र पर प्रेसीडेंट, रिपब्लिक ऑफ इंडिया लिखा जाता रहा है। बीते एक-दो महीने के भीतर की इन राजनीतिक सरगर्मियों के चलते देश में अभी से अगले चुनाव को लेकर माहौल बन गया लगता है।
विधानसभाई चुनावों में पूर्वाभ्यास
जहां तक विपक्ष का सवाल है, इन बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों में तो वह भी ‘इंडिया’ गठबंधन के बैनर तले सरकार के खिलाफ अपनी एकजुटता को और मज़बूती देने में लगा हुआ है। बंगलुरु में दूसरी बैठक तक ‘इंडिया’ में सिर्फ 26 दल ही शामिल थे, जिनकी संख्या मुंबई बैठक तक बढ़कर 28 हो गई है। उसके बाद बनी समन्वय समिति की एक बैठक भी हो चुकी है, जिसमें गठबंधन के बीच सीटों के बंटवारे की शुरुआती बातचीत हो चुकी ही। इसके साथ ही यह भी तय हुआ है कि अगले महीने अक्तूबर में ‘इंडिया’ गठबंधन की ओर से पहली रैली भोपाल में की जाएगी। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं, जहां भाजपा और कांग्रेस में आमने-सामने की लड़ाई है, विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन अब भी उसके सामने आपसी तालमेल बैठाने की ही जुगत में लगा हुआ है। उसके घटक दलों के बीच अभी तक भी कुछ ना कुछ ‘किंतु-परंतु’ बना हुआ ही है। शायद यही वजह है कि कई ज़रूरी फैसले चाहकर भी नहीं हो पा रहे हैं। मसलन गठबंधन के संयोजक के चयन और जल्द ही दिल्ली में उसका कार्यालय खुलने का बहुत शोर होने के बाद भी विपक्षी दल अभी तक यह करने में असफल रहे हैं।
कांग्रेस से महती समझदारी और उदारता की अपेक्षा
विपक्ष के इस गठबंधन में देखा जाए तो उसके सबसे अहम घटक कांग्रेस की ज़िम्मेदारी और जवाबदेही सबसे ज्यादा है। भाजपा के खिलाफ पूरे देश में सबसे ज्यादा सीटों पर लड़ने वाली वह इकलौती पार्टी है। देश के दस राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड और हिमाचल की 225 लोकसभा सीटों में से भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 200 सीटें जीत ली थीं। केंद्र में 2019 में फिर से मोदी सरकार की वापसी में इन 200 लोकसभा सीटों का बहुत बड़ा योगदान रहा है।
उत्तर प्रदेश और दिल्ली को छोड़ दें तो बाकी कई राज्यों में कांग्रेस और भाजपा की सीधी लड़ाई होती है। 2019 के नतीजों से यह साफ है कि कांग्रेस सीधी लड़ाई में भाजपा को पछाड़ने में नाकाम रही है। ऐसे में 2024 के लिए यदि 28 विपक्षी राजनीतिक दल ‘इंडिया’ गठबंधन की छतरी के नीचे आकर एक साथ चुनाव लड़ने को तैयार हैं तो उनसे तालमेल व दूसरे मामले में कांग्रेस को बड़ी भूमिका निभानी होगी। उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, बिहार, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के क्षेत्रीय क्षत्रपों से लोकसभा सीटों के बंटवारे में उसे बड़ी समझदारी का परिचय देना होगा, जिससे जिन राज्यों में वह भाजपा के साथ सीधी लड़ाई में है, वहां वह मजबूती से लड़ सके और जहां ‘इंडिया’ के दूसरे घटक दल जीत दिलाने में सक्षम हों, वहां वह भाजपा को रोक सकें। इस तरह देखें तो ‘इंडिया’ गठबंधन को मजबूत बनाने और उसके घटक दलों को साथ लेकर आगे बढ़ने की बड़ी जवाबदेही और ज़िम्मेदारी कांग्रेस के कंधों पर है, क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनाव में क्षेत्रीय दलों से कहीं ज्यादा कांग्रेस का अपना भविष्य और साख दांव पर है। लिहाजा उसे ज्यादा समझदारी से इस गठबंधन आगे ले जाने में बड़ी भूमिका निभानी होगी। कह सकते हैं ‘इंडिया’ गठबंधन की सफलता का ज्यादा दारोमदार कांग्रेस पर ही है।

* लेखक राजनीतिक विश्लेषक व वरिष्ठ पत्रकार हैं। राजकेश्वर जी अमूनन हमारी वेब पत्रिका के लिए लिखते रहते हैं। इनका इससे पहले वाला लेख आप यहाँ देख सकते हैं।
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