इटली में ख़ुशियाँ बाँटती सस्पेंडेड कॉफी

प्रियंवदा सहाय* 

अंग्रेज़ी में एक कहावत है-शेयरिंग इज केयरिंग। यानी चीजों को साँझा कर किसी की देखभाल करना। छोटी-छोटी चीज़ें साँझा कर हम लोगों में ख़ुशियाँ बाँटने के साथ उनकी देखभाल भी कर सकते हैं। इटली की दुनिया में ऐसी ख़ुशियाँ कॉफी शॉप या रेस्तराँओं में खूब बाँटी जाती हैं। अंग्रेज़ी में इस ख़ुशी को सस्पेंडेड कॉफी और इटैलियन में सॉसपेसो कॉफी के नाम से जानते हैं। इससे भले ही ज़रूरतमंदों के लिए पेट भरने का इंतज़ाम नहीं होता लेकिन एक अच्छी कॉफी ग़रीबों के चेहरे से थकान ग़ायब करने के साथ मुस्कुराहट बिखेरने का काम ज़रूर करती है। 

क्या है सस्पेंडेड कॉफी

सस्पेंडेड कॉफी का मतलब यह होता है कि कोई व्यक्ति दो कॉफी का दाम देकर केवल एक का सेवन करे। इसमें दूसरी कॉफी सस्पेंडड मानी जाती है। आप सोचेंगे कि भला कोई जानबूझकर दोगुनी क़ीमत में एक कप कॉफी क्यों ख़रीदेगा। लेकिन ग्राहक के ऐसा करने का मक़सद किसी अंजान ज़रूरतमंद या गरीब व्यक्ति के लिए एक कप कॉफी की व्यवस्था करना होता है। 

यहाँ लोग अपने बजट को देखते हुए एक से ज़्यादा सस्पेंडेड कॉफी का बिल भी चुका देते हैं। मतलब किसी ने एक कप कॉफी ख़रीदी लेकिन क़ीमत चार -पाँच कप की चुका दी। ग्राहक के ऐसा करने से सस्पेंडेड कॉफी के खाते में कप की संख्या जुड़ती चली जाती है। अब कोई भी ज़रूरतमंद कॉफी शॉप पर आकर दान किये गये सस्पेंडेड कॉफी के बारे में पूछ सकता है। और दुकानदार मुफ़्त में उसे अच्छी कॉफी मुहैया कराता है। इस पूरी प्रक्रिया में कॉफी दान करने वाले और इसका लाभ उठाने वाले ज़रूरतमंद दोनों एक दूसरे से पूरी तरह अंजान होते हैं। यानी सस्पेंडेड कॉफी का लाभ किसी अंजान को मिलता है। 

इटली में यह परंपरा लंबे समय से  चली आ रही है। जिसे अब कई दूसरे देशों में भी अपनाया जा रहा है। ख़ास तौर पर यूरोपीय देशों में इसका चलन बढ़ता जा रहा है। अब कई जगहों पर अब कॉफी के साथ सस्पेंडेड सैंडविच, टोस्ट, कुकीज़ देने की शुरुआत भी हो चुकी है। लोग इस चलन को ख़ुशी बाँटने का एक अच्छा ज़रिया मानते हैं और जो लोग इसे मदद या दान के रूप में करना चाहते हैं, उन्हें भी इसका एक अच्छा ज़रिया मिल जाता है।

सस्पेंडेड कॉफी का चलन हालाँकि 2011 के बाद तेज़ी से बढ़ा है लेकिन असल में इस परंपरा की शुरुआत इटली के नेपल्स में दूसरे विश्वयुद्ध के बाद शुरू हुई थी। सस्पेंड कॉफी की लोकप्रियता और लोगों में इसके लिए बढते सहयोग भाव को देखकर अब इटली और कई दूसरे देशों में भी ‘सस्पेंडेड कॉफी डे’ भी मनाया जाने लगा है।

आपको एक दिलचस्प बात यह भी बता दूँ कि इटली के लोग मानते हैं कि उनके बुरे से बुरे समय में भी कॉफी उनसे नहीं छूट सकती। ख़राब समय में उनसे भले ही कई चीजें और आदतें पीछे छूट जाए लेकिन कॉफी उनमें से एक नहीं हो सकती। इसलिए अगर कोई कॉफी ख़रीदने में भी असमर्थ है तो ऐसी मान्यता है कि उसके प्रति दयालु होना चाहिए और उसे सस्पेंड कॉफी गिफ़्ट कर ख़ुशी देनी चाहिए। यहाँ के कॉफी विक्रेता बताते हैं कि इटली में कॉफी पीने की शुरूआत दो सौ साल से भी पहले हुई थी। तब से यहाँ कि परंपरा और समाज में कॉफी का विशेष महत्व बन गया है। यह केवल एक पेय पदार्थ नहीं बल्कि लोगों को जोड़ने और उन्हें खुश करने का एक ज़रिया भी है।

अगर आपको इटली के नेपल्स में जाने का मौक़ा मिले तो आप पायेंगे कि यहाँ के कुछ रेस्तराँओं में एक कॉफी आर्डर करने पर भी दो कप कॉफी का बिल पेश कर दिया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यहाँ के तक़रीबन सभी लोगों को सस्पेंडेड कॉफी के चलन के बारे में पता है। इसलिए यह माना जाता है कि कॉफी ख़रीदने वाला किसी अजनबी के साथ दूसरी कॉफी को बॉंटना भी पसंद करेगा। कुछ लोग इसे यहाँ के लोगों के ख़ुशमिज़ाज होने का परिचायक मानते हैं। यानी अगर आप ख़ुश हैं तो ख़ुद की कॉफी पीने के साथ ही दुनिया को भी कॉफी उपहार में दे रहे हैं।

जहां अजनबी और ग़रीबों के लिए सस्पेंडेड कॉफी किसी सरप्राइज़ गिफ़्ट से कम नहीं वहीं यह परंपरा दूसरों के प्रति विनम्र, शालीन और ज़िम्मेदार बनने का पाठ पढ़ाती है। यह देखना वाक़ई सुखद लगता है कि जहां रेस्तराँ में परिवार, दोस्त के अलावा व्यवसायी व कर्मचारियों की टोली कॉफी की चुस्कियाँ ले रही होती है तो वहीं एक गरीब अभावग्रस्त व्यक्ति भी किसी अंजान की मदद से सम्मान के साथ अपनी कॉफी का आनंद उठा रहा होता है। 

हालाँकि नेपल्स से शुरू हुए इस चलन की आलोचना भी खूब होती है। कुछ लोगों का कहना है कि अगर किसी गरीब को कॉफी के बदले भरपेट भोजन या फिर आर्थिक मदद दी जाए तो बेहतर होगा। लेकिन इसके पक्षधर कहते हैं कि सस्पेंड कॉफी लोगों को ख़ुशी देने के लिए है। कॉफी से पेट नहीं भरता लेकिन इससे थकान दूर होने के साथ ख़ुशी भी मिलती है। दान स्वरूप दिया गया कॉफी लोगों को शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से मदद देता है।

*प्रियम्वदा सहाय क़रीब 11 साल भारत में एक मुख्यधारा के अख़बार में बतौर वरिष्ठ पत्रकार काम करने के बाद अब स्वीडन में रहती है। अब यहाँ से अपने अनुभव व लोगों से बातचीत के आधार पर यूरोप के सामाजिक विषयों, संस्कृति, परंपरा, पर्यटन और सामाजिक-आर्थिक समानता से जुड़े विषयों पर भारतीय समाचार पत्र-पत्रिकाओं और वेबसाइट्स के लिए लिखती रहती हैं। 

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