सुधीरेन्द्र शर्मा* रिश्तेदारी का उद्गम कैसे और कब हुआ इस पर विचार करने से अच्छा तो यह है कि हम यह जांचें कि 'यह कहाँ आ गए यूँ ही साथ-साथ चल के'।  जहाँ तक...
राजेन्द्र भट्ट* ‘जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध’ - रामधारी सिंह दिनकर की यह कालजयी चेतावनी समर से मुंह छिपाए, सुविधाजीवी वर्ग को आज भी आईने की तेज चमक दिखा सकती...
डॉ मधु कपूर* काल का व्यक्तित्व बहु आयामी है। हमारी हर क्रिया में काल कहीं  न कहीं  नेपथ्य में  छिपा रहता है। कोई कहता है यह नित्य अपरिवर्तनीय, निरपेक्ष...
राजकेश्वर सिंह* लोकसभा चुनाव के पहले चरण में हुआ फीका मतदान कुछ ज्यादा चौकाने वाला नहीं है। यह आशंका तो पहले से ही थी, क्योंकि चुनाव आयोग और सरकारी मशीनरी की सारी कोशिशों के...
राजेन्द्र भट्ट* राजेन्द्र भट्ट नए-नए साहित्यिक प्रयोग करते रहते हैं। उनकी प्रयोगशाला हमारी वेबपत्रिका है। अभी दो-चार रोज़ पहले उनका ऐसा ही प्रयोग "मूली लौट आई" के साथ...
विभिन्न दार्शनिक सिद्धांतों से परिचित होने के लिए पिछले कुछ सप्ताह में डॉ मधु कपूर के चार लेख आप पहले पढ़ चुके हैं। आज के अपने लेख में...
डॉ मधु कपूर* द्वारा पुस्तक समीक्षा प्रमुख भाषाविद एवं भाषा विज्ञानी डॉ सुरेश पंत की पिछले वर्ष प्रकाशित हुई बहुचर्चित पुस्तक ‘शब्दों के साथ-साथ’ का दूसरा भाग भी हाल ही में प्रकाशित...
सुधीरेन्द्र शर्मा* 'सच' सब सुनना चाहते हैं, लेकिन सच बोलना कोई-कोई! शायद इसलिए सच बोलने से सब कतराते हैं कि कहीं सच को हथियार बनाकर सच-बोलने वाले पर ही उसका...
ओंकार केडिया* की कविताएं आप इस वेब पत्रिका में पहले भी पढ़ चुके हैं। पूर्व में प्रकाशित उनकी अनेक कविताओं में से कुछ आप यहाँ, यहाँ और यहाँ पढ़ सकते हैं। उनका कविता संग्रह इन्द्रधनुष भी...
डॉ मधु कपूर* विभिन्न दार्शनिक सिद्धांतों से परिचित होने के लिए पिछले कुछ सप्ताह में डॉ मधु कपूर के तीन लेख आप पहले पढ़ चुके हैं। पहला था “मैं कहता आँखिन देखी” और...

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