पूनम जैन*
कल बिहार विधानसभा चुनाव की तिथियों की घोषणा होते ही एकबारगी फिर याद ताज़ा हो आई उन प्रवासी मज़दूरों की जिन्हें कुछ माह पहले अचानक ही अपने घरों को लौटने को कह दिया गया था। इनमें से ज़्यादातर मज़दूरों को बिहार ही लौटना था जहां अब चुनाव होने हैं। पूनम जैन पहले भी इस वेब पत्रिका के लिए कवितायें दे चुकी हैं, उनकी एक कविता “राम जन जन में, राम मन मन में” तो ख़ासी पसंद की गई थी। हमारे पास पहले से आई उनकी एक कविता चुनावों के बारे में बहुत कुछ कहती है और इसलिए बिहार चुनाव के अवसर पर हम आपके सामने रख रहे हैं।
चुनाव का मौसम
फिर आया चुनाव का मौसम
अब ये नेता क्या-क्या रंग दिखाएँगे
ज़रूरत पड़ने पर छिपे थे बिलों में
अब बाहर निकल कर आएँगे!
पहले के वादे भूले, अब नए सब्ज़बाग़ दिखाएँगे
सत्ता पाने की लालसा में सारे अधर्म निभाएंगे
अब ये नेता क्या क्या गुल खिलाएँगे!
कहीं चुनाव जीतते हैं ख़रीद कर वोटों से
कहीं बदलें सरकार विधायकों को ख़रीदकर नोटों से
फिर एक बार हमारे लोकतंत्र का मज़ाक़ उड़ाएँगे
अब ये नेता क्या क्या गुल खिलाएँगे!
धृतराष्ट्र सी अभिलाषा इनकी शासन करने की
शकुनि सी नियति इनकी हर पल छल करने की
इनके छल को हल करने हम पांडव कृष्ण कहाँ से लाएँगे
अब ये नेता क्या क्या गुल खिलाएँगे!
कहते थे रोज़ी देंगे,रोटी देंगे,सर पर छत लगवाएँगे
रोज़ी छीनी, रोटी छीनी, दर-दर तुम्हें भटकाएँगे,
पता भी नहीं चलेगा तुमको, ये फिर से छल जाएँगे,
अब ये नेता क्या क्या गुल खिलाएँगे!
अच्छा या बुरा इंसान नहीं, हिन्दू-मुस्लिम से पहचान कराएँगे
धर्म इन्हें कोई निभाना नहीं पर मंदिर कई बनवाएँगे
तुम जानो इरादे इनके ये भाई भाई को लड़वाएँगे
अब ये नेता क्या क्या गुल खिलाएँगे!
*पूनम जैन एक संवेदनशील गृहिणी हैं और अपने आस-पास के समाज से सरोकार रखती हैं। कभी कभी अपने मन की बात कहने के लिए कवितायें भी लिखती हैं। वह उत्तरी दिल्ली में रहती हैं।
बहुत सुंदर
Well said
Superb
बेहतरीन!! एक आम आदमी की पीढ़ा उसकी ही ज़ुबानी!!
” चुनाव का मौसम “कविता भारतीय राजनेताओं का चरित्र चित्रण करने वाली कविता है ।किस प्रकार रुप बदल कर राजनेता, लोगों को मूर्ख बनाते हैं यह दिखाया गया है साथ ही मतदाताऔं को सावधान भी किया गया है।कुल मिला कर कविता सरल शब्दो मतदाताओं को जागरुक करने में सफल होती जान पड़ती है।
सटीक बातें सलीके से कही हुई । पूनम के इस पक्ष से हम अनभिज्ञ थे। बहुत ख़ूब।