योगेन्द्र दत्त शर्मा* कभी जनकवि नज़ीर अकबराबादी ने 'आदमीनामा' लिखा था। उस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए लगभग दो सदियों बाद मैंने नये दौर का 'एक और आदमीनामा' तैयार किया है। सो प्रस्तुत...
आखिरी पन्ना ‘आखिरी पन्ना’ उत्तरांचल पत्रिका के लिए लिखा जाने वाला एक नियमित स्तम्भ है। यह लेख पत्रिका के अक्तूबर 2019 अंक के लिए लिखा गया। जब...
मनोज पांडे* इस वेब पत्रिका पर नियमित आने वाले पाठक मनोज पांडे के नाम से परिचित होंगे जिन्होंने UNDER THE LENS केटेगरी के तहत पचास से भी ज़्यादा लेख लिख कर अलग-अलग विषयों की गहन...
पारुल बंसल* दुपट्टा - 1 सूर्य की किरणों की डोर बांधकर सुखाया है मैंने अपना वह दुपट्टा जिसे ओढ़ भीगी थी यौवन...
धीरज सिंह* कुछ है जोमुँह बाये खड़े ह्रास के बीच भीअपने शिल्प की ज़िद सींचता रहता है कुछ है जोअंत के नंगे सच परहसरतों का कोहरा बुनता रहता है
इस सरकार ने मीडिया के पतन को सार्वजनिक कर दिया है और अब कुछ भी छिपा नहीं रहा। चिंता की बात ये है कि यदि सरकार बदल भी जाती है तो भविष्य की सरकारों को यह...
राजकेश्वर सिंह* देश के मौजूदा सारे संकट एक तरफ़ हैं, लेकिन एक नया संकट इन दिनों जेरे बहस है।  इस बहस की धार दिनों-दिन तेज़ होती जा रही है। सवाल बढ़ते जा रहे...
पारुल बंसल* क्षणिकाएं एक - प्रेम ने सुनी सिसकी कानों से और आ गया आंखों के रास्ते से!
Vidya Bhushan Arora Vir Sanghvi’s principal at Mayo told his mother that he found Vir a little arrogant, but the boy had become serious and responsible after his father died. It would be interesting...
राजेन्द्र भट्ट नक्कारखाने में तूती – 4 बहुत समय से मैं  ‘सेन वॉइस’ यानि विवेकपूर्ण आवाज़ के बारे में कुछ लिखना चाहता रहा हूँ। इसके पीछे एक प्रसंग है...

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