पारुल बंसल की दो नई कविताएं

मंत्रोच्चार

मुझे लगता है मेरे नित्य मंत्रोच्चार की
मोटी परत शिवालय पर चढ़ गई है
मंत्रों के तीव्र स्वर में अभिव्यंजना करते-करते
जिह्वा विराम चाहती है क्योंकि भोलेनाथ
उस जटिल परत के नीचे घनघनाते स्वरों को
उपेक्षा की नाव में लाद कर
मंझधार में छोड़ चुके हैं….

सोचती हूँ कि
कुछ दिन मंत्रोच्चार की प्रक्रिया को रोक दूँ
जहां का तहां
ताकि नई संभावनाओं को अवसर मिले
और शायद मोटी, जमी परत को दरकने का
भरपूर समय मिले!

क्या पता इससे मेरी गुहार का रास्ता
भोलेनाथ के श्रवण मार्ग तक पहुँच जाये
और उन मंत्रों की गूंज को
कोने में पड़े -पड़े केतकी और कनेर के फूल
सुन -सुनकर चढ़ाने योग्य हो जाएं!
कहते हैं ना कि
ईशकथा का श्रवण करने से
सारे श्राप और पाप धुल जाते हैं!!!

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सुनो हिचकियो

सुनो हिचकियो !
तुम एकांत में ही आना
अन्यथा मेरे साथ
तुम भी हो जाओगी बदनाम
नाम दिए जाएंगे तुम्हें दस तरह के
लगाए जाएंगे कयास सौ तरह के!

और अगर आना ही पड़े सबके बीच
तो दबे पाँव चली आना
अपने होने का अहसास
किसी को ना होने देना
दम साध कर रखना
क्योंकि
अब नहीं खड़ा होना चाहती
लोगों की अदालतों में!

हाँ, जब भी मन करे
मेरे एकांत को भंग करने का
तो ज़रूर चली आना
मेरे एकांत के आँगन में
खूब शोर करना और
अपने मन गुन की कहना!

तब भी दिल ना भरे तुम्हारा
तो मेरे साथ चली आना
खुले आसमान के नीचे
और कितनी भी ज़ोर से
अपनी उपस्थिति को दर्ज कराना
मेरा कंठ सब समा लेगा खुद के भीतर
और क्या पता कंठ में समाया यही शोर
एक नये ग्रंथ की आधारशिला बन जाए।

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*पारुल हर्ष बंसल मूलत: वृन्दावन से हैं और आजकल कासगंज में हैं। इनकी कवितायें स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं और वेब पोर्टल्स पर प्रकाशित होती रही हैं। स्त्री-अस्मिता पर कविताएं लिखना इनको विशेष प्रिय है। इनकी कवितायें पहले भी इस वेबपत्रिका में पढ़ चुके हैं। इस पोर्टल पर प्रकाशित कविताओं में से कुछ आप यहाँयहाँ और यहाँ पढ़ सकते हैं। प्रेम और स्त्री मन की कुछ कविताएं यहाँ देख सकते हैं।

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