डॉ. शालिनी नारायणन* 'एक दोपहर स्टेशन की' कहानी का यह अंतिम भाग है। यदि आप इसके पिछले भाग पढ़ना चाहें तो यहाँ और यहाँ पढ़ सकते हैं। चाय का कप वहीं छोड़ कर...
विनोद रिंगानिया* असम में खूब चर्चित और असम के बाहर भी अपनी अच्छी पहचान बना चुके साहित्यकार विनोद रिंगानिया ने अपने हाल ही में प्रकाशित ऐतिहासिक उपन्यास "डॉ वेड की डायरी - असम में...
राजकेश्वर सिंह* देश में तीन दशक पीछे की राजनीति (33 साल पहले) को याद कीजिए, जब मंडल और कमंडल की राजनीति उबाल पर भी थी। सरकारी नौकरियों में पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण के...
सत्येन्द्र प्रकाश* बुधवार की शाम थी। प्रिंसिपल साहब के घर बच्चे तैयार हो रहे थे। बुधवार की शाम को टीचर्स ट्रैनिंग स्कूल में संगोष्ठी का आयोजन होता था। प्रशिक्षु शिक्षक संगोष्ठी में अपने अपने...
डॉ. शालिनी नारायणन* वैसे तो अपने आप में यह कहानी स्वतंत्र रूप से भी पढ़ी जा सकती है लेकिन यदि आप इसका पिछला भाग पढ़ना चाहें तो यहाँ पढ़ सकते हैं।
Manoj Pandey* Let me start with a small clarification before we start the actual discussion. If you read the title carefully, this article is going to be very focussed. We'll talk about cooking, and...
ओंकार केडिया* ओंकार केडिया जो यदा-कदा आपकी इस वेब-पत्रिका में अपना योगदान देते रहते हैं, अपने दो कविता-संग्रहों के प्रकाशन के बाद अब एक व्यंग्य-संकलन को लेकर आ रहे हैं। शीघ्र-प्रकाश्य यह संकलन "मल्टीप्लेक्सस...
अजीत सिंह* कहावत है कि भाई आपके दाएं हाथ की तरह होता है। दुख सुख का साथी, मुसीबत में आपके साथ जूझने को तैयार, आपका विश्वसनीय हथियार! आज मैंने अपना वो...
राजकेश्वर सिंह* ‘राजनीति में हमेशा दो और दो का जोड़ चार ही नहीं होता’। यह कहावत काफी चर्चित है और सियासत में कई बार इसकी नजीर देखने को भी मिलती है। इन दिनों देश...
राजेन्द्र भट्ट* शाहरुख की फिल्म 'जवान' देखने के बाद राजेन्द्र भट्ट के मन में जो विचार उमड़े-घुमड़े, उनको उन्होंने यहाँ दर्ज कर दिया! अपने शाहरुख की ‘जवान’ मैंने पूरी...

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