डॉ. शालिनी नारायणन* वैसे तो अपने आप में यह कहानी स्वतंत्र रूप से भी पढ़ी जा सकती है लेकिन यदि आप इसका पिछला भाग पढ़ना चाहें तो यहाँ पढ़ सकते हैं।
सत्येन्द्र प्रकाश* बुधवार की शाम थी। प्रिंसिपल साहब के घर बच्चे तैयार हो रहे थे। बुधवार की शाम को टीचर्स ट्रैनिंग स्कूल में संगोष्ठी का आयोजन होता था। प्रशिक्षु शिक्षक संगोष्ठी में अपने अपने...
विनोद रिंगानिया* असम में खूब चर्चित और असम के बाहर भी अपनी अच्छी पहचान बना चुके साहित्यकार विनोद रिंगानिया ने अपने हाल ही में प्रकाशित ऐतिहासिक उपन्यास "डॉ वेड की डायरी - असम में...
डॉ. शालिनी नारायणन* 'एक दोपहर स्टेशन की' कहानी का यह अंतिम भाग है। यदि आप इसके पिछले भाग पढ़ना चाहें तो यहाँ और यहाँ पढ़ सकते हैं। चाय का कप वहीं छोड़ कर...
सत्येन्द्र प्रकाश*  आज भी वैद्यजी खाना खा कर बाहर निकले। उनके बाएं हाथ में पानी का लोटा था और दाएं हाथ में दाल और भात मिला हुआ एक बड़ा कौर (निवाला)। बाहर निकल कर...
सत्येन्द्र प्रकाश* सत्येन्द्र प्रकाश जिनका पूरा परिचय आप लेख के अंत में देख सकते हैं, इस वेब-पत्रिका के लिए पिछले कुछ सप्ताह से नियमित लिख रहे हैं लेकिन आज का यह व्यंग्य उनके...
सत्येन्द्र प्रकाश* टूर्नामेंट का आखिरी मैच, फाइनल! शामपुर की टीम कप की प्रबल दावेदार थी। उसकी भिड़ंत इस आखिरी मैच में रतनपुरा से थी। रतनपुरा की टीम का फाइनल में पहुँचना विश्वास से परे ...
विनोद रिंगानिया* असम में खूब चर्चित और असम के बाहर भी अपनी अच्छी पहचान बना चुके साहित्यकार विनोद रिंगानिया ने अपने हाल ही में प्रकाशित ऐतिहासिक उपन्यास “डॉ वेड की डायरी – असम में...
असम में खूब चर्चित और असम के बाहर भी अपनी अच्छी पहचान बना चुके साहित्यकार विनोद रिंगानिया ने अपने हाल ही में प्रकाशित ऐतिहासिक उपन्यास “डॉ वेड की डायरी – असम में अंग्रेज़ी राज की शुरुआत” का...
सत्येन्द्र प्रकाश* हरसिंगार आज उदास था। बहुत उदास! कचनार के वे दो पेड़ शायद आज कट जाएँगे। ये दो कचनार उसके साथ ही तो लगाए गए थे। साथ साथ पनपे, बढ़े। साथ साथ पल्लवित...

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